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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


हाँ, तो मैंने इसी तरह की अनेक बातें देखीं। भारतवर्ष में घूमते समय भिन्न-भिन्न स्थानों में तुम्हें ऐसी सैकड़ों बातें दिखेंगी। ये चमत्कार सभी देशों में हुआ करते हैं। इस देश में भी इस तरह के आश्चर्यकारक काम देखोगे। हाँ, यह सच है कि इनमें अधिकांश धोखेबाजी होती हैं। परन्तु जहाँ तुम धोखेबाजी देखते हो, वहाँ तुम्हें यह भी मानना पड़ता है कि यह किसी की नकल है। कहीं-न कहीं कोई सत्य होना ही चाहिए, जिसकी यह नकल की जा रही है। अविद्यमान वस्तु की कोई नकल नहीं कर सकता। किसी विद्यमान वस्तु की ही नकल की जा सकती है।

प्राचीन समय में हजारों वर्ष पूर्व ऐसी बातें आज की अपेक्षा और भी अधिक परिमाण में हुआ करती थीं। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि जब किसी देश की आबादी घनी होने लगती है, तो मानसिक बल का ह्रास होने लगता है। जो देश विस्तृत है और जहाँ लोग बिरले बसे होते हैं, वहाँ शायद मानसिक बल अधिक होता है। विश्लेषण-प्रिय होने के कारण हिन्दुओं ने इन विषयों को लेकर उनके सम्बन्ध में अन्वेषण किया औऱ वे कुछ मौलिक सिद्धान्तों पर जा  पहुँचे, अर्थात् उन्होंनें इन बातों का एक शास्त्र ही बना डाला। उन्होंने यह अनुभव किया कि ये बातें यद्यपि असाधारण हैं, तथापि अनैसर्गिक नहीं हैं। अनैसर्गिक नाम की वस्तु ही नहीं है। ये बातें भी ठीक वैसी ही नियमबद्ध हैं, जैसी भौतिक जगत् की अन्यान्य बातें। यह कोई निसर्ग की लहर नहीं कि एक मनुष्य इन सामर्थ्यों को साथ लेकर जन्म लेता हो।

इन शक्तियों के सम्बन्ध में नियमित रूप से अध्ययन किया जा सकता है, इनका अभ्यास किया जा सकता है और ये शक्तियाँ अपने में उत्पन्न की जा सकती हैं। इस शास्त्र को वे लोग ‘राजयोग’ कहते हैं। भारतवर्ष में ऐसे हजारों मनुष्य है, जो इस शास्त्र का अध्ययन करते हैं। और यह सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए दैनिक उपासना का एक अंग बन गया है।

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