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मन की शक्तियाँ

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :55
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9586

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स्वामी विवेकानन्दजी ने इस पुस्तक में इन शक्तियों की बड़ी अधिकारपूर्ण रीति से विवेचना की है तथा उन्हें प्राप्त करने के साधन भी बताए हैं


हम देखते हैं कि यद्यपि यह बात सच है, तथापि कोई भी भौतिक सिद्धान्त, जो हमें ज्ञात है, इसे नहीं समझा सकता। रासायनिक या पदार्थ-वैज्ञानिक ज्ञान इसका विशदीकरण कैसे कर सकता है? कितनी प्राणवायु (Oxygen), कितनी उद्जनवायु (Hydrogen), कितना कोयला (Carbon) या कितने परमाणु और उनकी कितनी विभित्र अवस्थाएँ, उनमें विद्यमान कितने कोष इत्यादि इस गूढ़ व्यक्तित्व का स्पष्टीकरण कर सकते हैं? फिर भी हम देखते हैं कि यह व्यक्तित्व एक सत्य है, इतना ही नहीं, बल्कि यही प्रकृत मानव है। यही मनुष्य की सब क्रियाओं को अनुप्राणित करता है सभी पर प्रभाव डालता है, संगियों को कार्य में प्रवृत्त करता है तथा उस व्यक्ति के लय के साथ विलीन हो जाता है। उसकी बुद्धि, उसकी पुस्तकें और उसके किये हुए कार्य-ये सब तो केवल पीछे रहे हुये कुछ चिन्ह मात्र हैं। इस बात पर विचार करो। इन महान् धर्माचार्यों की बड़े-बड़े दार्शनिकों के साथ तुलना करो।

इन दार्शनिकों ने बड़ी आश्चर्यजनक पुस्तकें लिख डाली हैं, परन्तु फिर भी शायद ही किसी के अन्तर्मानव को - व्यक्तित्व को उन्होंने प्रभावित किया हो। इसके विपरीत, महान् धर्माचार्यों को देखो, उन्होंने अपने काल में सारे देश को हिला दिया था।

व्यक्तित्व ही था वह, जिसने यह अन्तर पैदा किया। दार्शनिकों का वह व्याक्तित्व, जो असर पैदा करता है, किंचिन्मात्र होता है, और महान् धर्मसंस्थापकों का वही व्यक्तित्व प्रचण्ड होता है। दार्शनिकों का व्यक्तित्व बुद्धि पर असर करता है और धर्मसंस्थापकों का जीवन पर।

पहला मानो केवल एक रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कुछ रासायनिक उपादान एकत्रित होकर आपस में धीरे-धीरे संयुक्त हो जाते हैं और अनुकूल परिस्थिति होने से या तो उनमें से प्रकाश की दीप्ति प्रकट होती है, या वे असफल ही हो जाते हैं। दूसरा एक जलती हुई मशाल के सदृश है, जो शीघ्र ही एक के बाद दूसरे को प्रज्वलित करता है।

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