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मेरा जीवन तथा ध्येय

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9588

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दुःखी मानवों की वेदना से विह्वल स्वामीजी का जीवंत व्याख्यान

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मुझे यह बताते हर्ष होता है कि हमने प्रगल्भ रूप में प्रारम्भ कर दिया है। ठीक इसी तरह मैं नारियों के लिए भी आयोजना करना चाहता हूँ। मेरा सिद्धान्त है कि प्रत्येक अपनी सहायता आप करता है। मेरी सहायता तो दूर की सहायता है। भारतीय स्त्रियाँ हैं, अंग्रेज स्त्रियाँ हैं और मुझे आशा है, अमेरिकी स्त्रियाँ भी इस कार्य को हाथ में लेने के लिए आगे आएँगी। उनके आरम्भ करते ही मैं अपना हाथ अलग कर लूँगा। नारी पर पुरुष क्यों शासन करे? तथैव, पुरुष पर नारी क्यों शासन करें? प्रत्येक स्वतंत्र हैं। यदि कोई बन्धन है, तो वह है प्रेम का। नारियाँ स्वयं अपने भाग्य का विधान कर लेंगी – पुरुष जो कुछ उनके लिए कर सकते हैं, उससे कहीं उत्तम रूप से। यह समस्या नारी के प्रति अनौचित्य, वह केवल इसलिए कि पुरुषों ने स्त्रियों के भाग्यविधान का दायित्व ले लिया। और मैं ऐसी गलती के साथ प्रारम्भ नहीं करना चाहता, क्योंकि यही गलती समय के साथ बडी होती चली जाएगी – इतनी बड़ी कि अन्ततोगत्वा उसके अनुपात को सँभाल सकना असम्भव हो जाएगा। अतः यदि स्त्रियाँ कभी भी उससे मुक्त न हो सकेंगी – वह एक रस्म ही बन जाएगी। पर मुझे एक बार अवसर मिला है। मैंने तुमको अपने गुरुदेव की पत्नी की बात बताई है। हमारी उन पर अटूट श्रद्धा है। वे कभी हम पर शासन नहीं करतीं। अतः यह मार्ग पूर्णतः सुरक्षित है। कार्य के इस अंश को अभी सम्पन्न होना है।

।।समाप्त।।

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