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ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको

मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589

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कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

54. लाजवाब लिख दूँ मैं

 

मेरी ख़ातिर बना हक़ीक़त एक ख़्वाब, लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।।

यों गुलाब तेरे अधरों से
मिलता-जुलता लगता।
पर अधरों की तुलना में वो
फीका-फीका लगता।
फिर तेरे अधरों को कैसे क्यों गुलाब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।।

लोग बताते हैं- शराब में
होता बहुत नशा है।
पर तेरी आँखो से ज़्यादा
उसमें नशा कहाँ है।
फिर तेरी आँखों को कैसे क्यों शराब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।।

कवि सुन्दर चेहरे की तुलना
चंदा से ही करता।
पर चंदा से बढ़कर तेरे
चेहरे की सुंदरता।
फिर तेरे चेहरे को कैसे माहताब लिख दूँ मैं।
लाजवाब है क्यों न तुझे फिर लाजवाब लिख दूँ मैं।।

 

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