लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> मेरे गीत समर्पित उसको

मेरे गीत समर्पित उसको

कमलेश द्विवेदी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :295
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9589

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

386 पाठक हैं

कानपुर का गीत विधा से चोली-दामन का रिश्ता है। यहाँ का कवि चाहे किसी रस में लिखे

2. माँ का प्यार नहीं है

 

यहाँ सभी  सुख-सुविधायें  हैं  लेकिन सुख का सार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

घर में खायें या होटल में
मिल जाती है पूरी थाली।
लेकिन यहाँ नहीं मिल पाती
रोटी माँ के हाथों वाली।
तन का सुख है पर मन  वाला  वो सुखमय  संसार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

अक्सर सपने में दिख जाते
माँ के पाँव बिवाई वाले।
धान कूटने में पड़ जाने
वाले वो हाथों के छाले।
फिर भी  घर के काम-काज  से माँ  ने मानी  हार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

हम सब होली पर रँग खेलें
दीवाली पर दीप जलायें।
बच्चों के संग हँसी-ख़ुशी से
घर के सब त्यौहार मनायें।
पर सच पूछो  तो  माँ के  बिन कोई भी  त्यौहार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

बच्चों के सुख की ख़ातिर माँ
जाने क्या-क्या सह लेती है।
हम रहते परिवार साथ ले
पर माँ तनहा रह लेती है।
माँ के धीरज की धरती का कोई पारावार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

अपने लिए नहीं जीती माँ
सबके लिए जिया करती है।
घर को जोड़े रखने में वो
पुल का काम किया करती है।
माँ के बिना कल्पना घर की करना सही विचार नहीं है।
मिला शहर में आकर सब कुछ लेकिन माँ का प्यार नहीं है।।

 

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai