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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


100. मेरे उन चारों बेटों की


मेरे उन चारों बेटों की
करते हैं पड़ोसी खूब धुनाई
पिटते, कुटते रोते हैं
मेरी पलकें डबडबाई।

आँसू छलक पड़ते हैं मेरे
पुत्र तो ये भी हैं मेरे।

अब मैं नीर बहाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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