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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


24. पिता मजदूर मजदूरी करता


पिता मजदूर मजदूरी करता
खाने के बाद कितना बचता
बेचारा पाई-पाई जोड़ता
तब भी शादी जितना ना हुआ

मैं कब शादी लायक हो गई
शादी की कोई बात ना हुई

मैं कितनी अज्ञानी हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।

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