ई-पुस्तकें >> नारी की व्यथा नारी की व्यथानवलपाल प्रभाकर
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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ
62. मैंने इसको जब देखा
मैंने इसको जब देखा
अपना दिल इसे दे बैठा
पिता से जाकर जब पूछा
उसे धन का लोभी सोचा
मुझे दहेज अब ना चाहिए
घर की लक्ष्मी बस ये चाहिए
यह सुन खुश हो जाती हूँ
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।
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