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नारी की व्यथा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :124
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9590

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मधुशाला की तर्ज पर नारी जीवन को बखानती रूबाईयाँ


97. जब उन चारों ने देखा


जब उन चारों ने देखा
अपनी माँ का मुझमें चेहरा
बड़ा बेटा यूँ कहने लगा
देखो भाईयों, ये तो है अपनी माँ

तभी बीच में कूद पड़ा
मेरा पाँचवां मुबोला बेटा

एक बार फिर बँटने वाली हूँ।
क्योंकि मैं इक नारी हूँ।


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