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नया भारत गढ़ो

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :111
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9591

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संसार हमारे देश का अत्यंत ऋणी है।


हमारा राष्ट्र झोपड़ियों में बसता है

हमारा पवित्र भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्य-भूमि है। यही बड़े बड़े महात्माओं तथा ऋषियों का जन्म हुआ है, यही संन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यही - केवल यही - आदि काल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है।

प्रत्येक राष्ट्र की एक विशिष्टता होती है, अन्य सब बातें उसके बाद आती हैं।

भारत की विशिष्टता धर्म है। समाज-सुधार और अन्य सब बातें गौण है।

(हमारी) जाति अभी भी जीवित है, धुकधुकी चल रही है, केवल बेहोश हो गयी है।

 देश का प्राण धर्म है, भाषा धर्म है तथा भाव धर्म है।

तुम्हारी राजनीति, समाजनीति, रास्ते की सफाई, प्लेग-निवारण, दुर्भिक्ष पीड़ितों को अन्नदान आदिआदि चिरकाल से इस देश में जैसे हुआ है, वैसे ही होगा अर्थात् धर्म के द्वारा यदि होगा तो होगा अन्यथा नहीं।

तुम्हारे रोने-चिल्लाने का कुछ भी असर न होगा। अत: यदि तुम धर्म का परित्याग करने की अपनी चेष्टा में सफल हो जाओ और राजनीति, समाजनीति या किसी दूसरी चीज को अपनी जीवन-शक्ति का केन्द्र बनाओ, तो उसका फल यह होगा कि तुम एकबारगी नष्ट हो जाओगे।

संसार के इतिहास का अनुशीलन करने से प्रतीत होता है कि प्राकृतिक नियमों के वश ब्राह्मण आदि चारों वर्ण क्रम से पृथ्वी का भोग करेंगे। समाज का नेतृत्व विद्या-बल से प्राप्त हुआ हो, चाहे बाहु-बल से अथवा धन-बल से, पर उस शक्ति का आधार प्रजा ही है।

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