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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास


‘‘और तुम्हारी बहन के खोये हुए पति की भी तो बात है?’’

‘‘दीदी गृहस्थ-जीवन में रस खो चुकी हैं और उनका विचार है कि जीजाजी ने नया विवाह कर लिया होगा। इस कारण वह उनके नये जीवन में विघ्न बनना नहीं चाहतीं।’’

कुलवन्तसिंह अपनी पत्नी के कथन पर गम्भीर विचार में मग्न हो गया। कुछ देर तक दोनों अपने-अपने विचारों में निमग्न रहे। कुलवन्तसिंह विचार कर रहा था कि अमृतलाल के पुनः इस परिवार में आने से उसकी पारिवारिक शान्ति में भी विघ्न पड़ सकता है और महिमा के जीवन में तो भारी विस्फोट होने की सम्भावना है। इस पर भी वह इस परिणाम पर पहुँचा था कि अनिश्चित स्थिति नहीं रहने देनी चाहिये। इतना विचार, उसने ही मौन भंग किया। उसने गरिमा से पूछ लिया, ‘‘अब क्या विचार कर रही हो?’’

‘‘मैं यह विचार कर रही थी कि यदि यह जीजाजी ही हैं और इन्होंने अभी तक विवाह नहीं किया तो निस्सन्देह दीदी के जीवन का नया अध्याय आरम्भ हो सकेगा।’’

‘‘और यदि उसने विवाह कर लिया होगा तो क्या होगा?’’

‘‘तब माताजी का परिवार तो चलेगा ही। परन्तु दीदी के साथ किसी प्रकार की संधि करनी पड़ेगी। वह दूसरा विवाह नहीं कर सकते।’’

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