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उपन्यास >> परम्परा

परम्परा

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9592

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भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास

10

अमृतलाल ने आगे बताया, ‘‘उसी रात हम गाँव से रेल के स्टेशन को चल पड़े। स्टेशन पाँच मील के अन्तर पर था। लाहौर से कराची जाने वाली डाक गाड़ी में हमें स्थान मिल गया और दूसरे दिन मध्याह्न के समय हम कराची पहुँच गये।

‘‘लड़की कुछ रुपये अपने साथ लायी थी। अतः हम एक होटल में ठहर गये। वहाँ असगर नाम लिखा पति-पत्नी बन रहने लगे।

‘‘युद्ध बन्द हुआ। तब मैं कराची से भागने की योजना पर विचार करने लगा। मैंने अपनी बीबी फातिमा से कहा कि मैं नौकरी ढूँढ़ना चाहता हूँ। वह यही चाहती थी। इस कारण मैं प्रायः घर से निकलता था और सायंकाल घर लौट जाता था। कराची से भागने का कोई साधन नहीं मिल रहा था।

‘‘एक दिन यह सूसन एक दुकान पर मिल गयी। मैं उस दुकान के मालिक से कह रहा था, ‘हजूर! नौकरी चाहिये।’ दुकान एक जनरल स्टोर था।

‘नौकरी नहीं है।’ दुकानदार का स्पष्ट उत्तर था।

‘तो साहब! मैं भूखा मर जाऊँगा। आज तो सूखे चने खाने को भी दाम नहीं है।’

‘‘सूसन दुकान पर कुछ वस्तुये खरीद रही थी। मैं अंग्रेजी में बात कर रहा था। दुकान के मालिक ने कहा, ‘फर्श साफ करने का काम कर लोगे?’

‘‘मैंने कहा, हाँ। परन्तु उजरत तुरन्त मिलनी चाहिये। वरना काम भी नहीं कर सकूँगा।’

‘‘दुकानदार ने कहा, ‘पहले दो-तीन घण्टे काम कर लो, पीछे खाने-भर को मिल जायेगा।’

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