लोगों की राय
उपन्यास >>
परम्परा
परम्परा
प्रकाशक :
सरल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :400
मुखपृष्ठ :
Ebook
|
पुस्तक क्रमांक : 9592
|
|
8 पाठकों को प्रिय
352 पाठक हैं
|
भगवान श्रीराम के जीवन की कुछ घटनाओं को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास
गरिमा ने आँखें नीचे किये हुए कह दिया, ‘‘मैंने अपनी भूल का संकेत उनको बिना साथी का नाम-धाम बताये दे दिया हुआ है। इस पर वह हँसते रहे हैं। इस कारण इस बात का पता लगने का उतना भय नहीं जितना कि समझा जा सकता है। मैं तो तुम्हारे विषय में विचार कर रही थी–। उनको यदि पता चला कि अमृतलाल तुम्हारे पति है और हमने यह बात उनसे जान-बूझ कर छुपा रखी है तो इसका कुछ दूषित परिणाम भी हो सकता है। मैं समझती हूँ कि हमें उनकों जीजाजी की पूर्ण कथा और फिर उनके बाबा तथा पिताजी से सम्बन्ध की बात स्वयं ही बता देनी चाहिये।
‘‘मैंने बाबा से एक बात ही सीखी है। वह यह कि ज्ञान को छुपा कर रखना भी चोरी होती है। अधिकारी को ज्ञान करा देना चाहिये।
‘‘इस कारण अपनी पूर्ण बात बता देनी ठीक रहेगी और सब-कुछ प्रकट कर देना चाहिये। तदनन्तर जैसी भी स्थिति हो उसमें अपने व्यवहार का निश्चय करना चाहिये।’’
महिमा अब अपने को भगवान-भरोसे कर स्थित-चित्त हो चुकी थी। अतः उसने कह दिया, ‘‘ठीक है। मेजर साहब से पूर्ण इतिहास बता तो और फिर इस समस्या को सुलझाने का यत्न करो।
‘‘यदि यह निश्चय हो जाये कि यह पायलट महाशय तुम्हारे जीजाजी ही हैं तो फिर तुम उनकी माताजी को भी लिख सकती हो।’’
‘‘और तुम नहीं लिखोगी?’’
‘‘जब से मैं दिल्ली में आयी हूँ, मेरे सास-श्वसुर ने मेरा त्याग कर रखा है। उनका पत्र आये भी तीन वर्ष से ऊपर हो चुके हैं।’’
‘‘पर दीदी! तुमने भी तो उनका समाचार लेने का कभी यत्न नहीं किया। उनको अपने परिवार की परम्परा को, अपने साथ ही समाप्त होते देख बहुत दुःख है। मैं दिल्ली आने से पूर्व उनसे मिलने गयी थी तो वे बेचारे बीहड़ जंगल में निस्सहाय खड़े प्रतीत हुए थे।’’
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai