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पीढ़ी का दर्द

सुबोध श्रीवास्तव

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9597

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संग्रह की रचनाओं भीतर तक इतनी गहराई से स्पर्श करती हैं और पाठक बरबस ही आगे पढ़ता चला जाता है।


सिलसिला

आदमी
आजीवन सीखता है
सलीका
छुटपन में
बड़ी अंगुली थामकर
नन्हें कदमों से
नापता है
आंगन का दायरा,
रटता है
परिभाषाएँ-
घर
आँगन
सड़क की।

लड़कपन में-
समझता है
छुटपन की रटी
परिभाषाओं के अर्थ।
फिर
जब, 'आदमी' हो जाता है तो
रचता है
नई परिभाषाएं-
घर,
आँगन,
सड़क
और
आदमी की।

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