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राख और अंगारे

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :226
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9598

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मेरी भी एक बेटी थी। उसे जवानी में एक व्यक्ति से प्रेम हो गया।

'वह हार चोरी का था। किनारी बाजार वाले सेठ की पत्नी के गले से उस रात उड़ाया गया था, जिस रात रोशन थियेटर में तबस्सुम का नाच था।'

'ओह, तो यह बात है.. सन्देह तो मुझे भी कुछ हुआ था।’

'वह कैसे? ’

'बहुमूल्य वस्त्र पहने एक स्त्री और पुरुष यहां आए, कुछ गहने लिए और बदले में यह हार और पांच सौ रुपए दे गए। आप तो जानते हैं, यही हमारा धन्धा है।'

'परन्तु इस विषय में आपकी सहायता की आवश्यकता है।'

‘विश्वास रखिए, मुझसे जो कुछ भी बन सकेगा करूंगा।' तिवारी ने मुस्कराते हुए लाला छक्कनमल को धन्यवाद दिया और दुकान से बाहर चला गया।

यहां से वह सीधा पुलिस चौकी पहुंचा और प्रसिद्ध अप- राधियों की फाइल मंगवाकर देखने लगा। सब-इन्सपेक्टर राधा- किशन भी भीतर आ गया और तिवारी साहब को चिन्तित देखकर बोला-’आपने मुझे बुलावा भेजा था।'

'हां, कहो, उस हार का कोई पता चला?'

'अभी तक तो कुछ नहीं।'

'एक बात मुझे शंकित किए हुए है।'

'क्या?'

'जब कभी भी डांसर तबस्सुम का नाच होता है - जेबें कट जाने, घडियां और अन्य बहुमूल्य चीजों के खो जाने की घटनाएं साधारणतः हो जाती हैं। विचार किया जाए तो इसका कारण भीड़-भाड़ ही हो सकती है।'

'आपकी शंका उचित है।'

'तो तुम किस परिणाम पर पहुंचे?

'इसमें अवश्य किसी ऐसे व्यक्ति का हाथ है, जो उसी डांसर पार्टी से सम्बन्ध रखता है।'

दोनों चुप होकर विचारमग्न हो गए।

'बात तो बडी ध्यान देने योग्य है।'

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