लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> सरल राजयोग

सरल राजयोग

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :73
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9599

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

372 पाठक हैं

स्वामी विवेकानन्दजी के योग-साधन पर कुछ छोटे छोटे भाषण


''यह समस्त विश्व मेरा शरीर है। समस्त स्वास्थ्य, समस्त सुख मेरा सुख है, क्योंकि यह सब कुछ विश्व के अन्तर्गत है।'' कहो, ''मैं विश्व हूँ।'' अन्त में हमें ज्ञात हो जाता है कि सारी क्रिया हमारे भीतर से इस दर्पण में प्रतिबिम्बित हो रही है।

यद्यपि हम छोटी-छोटी लहरों के समान प्रतीत हो रहे हैं, तथापि हमारे पीछे आधार के रूप में सम्पूर्ण समुद्र है और हम उसके साथ एक हैं। लहर का अपने आपमें कोई अस्तित्व नहीं है। कोई लहर समुद्र को छोड़कर नहीं रह सकती।

यदि कल्पना-शक्ति का योग्य उपयोग किया जाए, तो वह हमारी परम हितैषिणी है। वह युक्ति के परे जा सकती है और वही एक ऐसी ज्योति है, जो हमें सर्वत्र ले जा सकती है।

अन्तःप्रेरणा हमारे भीतर से उठती है। हमें स्वयं अपनी उच्च मन:शक्तियों की सहायता से इसे जगाना होगा।

* * *

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book