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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


भारत

•    समस्त संसार हमारी मातृभमि का महान् ऋणी है। किसी भी देश को ले लीजिए, इस जगत् में एक भी जाति ऐसी नहीं है, जिसका संसार उतना ऋणी हो, जितना कि वह यहाँ के धैर्यशील औऱ विनम्र हिन्दुओं का है।

•    अनेकों के लिए भारतीय विचार, भारतीय रीति-रिवाज, भारतीय दर्शन, भारतीय साहित्य प्रथम दृष्टि में ही घृणास्पद प्रतीत होते हैं, पर यदि वे सतत प्रयत्न करें, पढ़ें तथा इन विचारों में निहित महान् तत्त्वों से परिचित हो जाएँ, तो परिणामस्वरूप उनमें से निन्यानबे प्रतिशत आनन्द से विभोर होकर उन पर मुग्ध हो जाएँगे।

•    पर जैसे जैसे मैं बड़ा होता हूँ, मैं इन प्राचीन भारतीय संस्थाओं को अधिक अच्छी तरह समझता जा रहा हूँ। एक समय था, जब मैं सोचता था कि उनमें से अनेक संस्थाएँ निरुपयोगी और व्यर्थ हैं, पर जैसे जैसे मैं बडा होता जा रहा हूँ, मुझे इनकी निन्दा करने में अधिकाधिक संकोच मालूम पड़ता है, क्योंकि इनमें से प्रत्येक, शताब्दियों के अनुभव का साकार स्वरूप है।

•    मेरी बात पर विश्वास कीजिए। दूसरे देशों में धर्म की केवल चर्चा ही होती है, पर ऐसे धार्मिक पुरुष, जिन्होंने धर्म को अपने जीवन में परिणत किया है, जो स्वयं साधक हैं, केवल भारत में ही हैं।

•    मैंने कहा कि अभी भी हमारे पास कुछ ऐसी बातें हैं, जिनकी शिक्षा हम संसार को दे सकते हैं। यही कारण है कि सैकड़ों वर्ष तक अत्याचारों को सहने, लगभग हजार वर्ष तक विदेशी शासन में रहने औऱ विदेशियों द्वारा पीड़ित होने पर भी यह देश आज तक जीवित रहा है। उसके अभी भी अस्तित्व में रहने का कारण यही है कि वह सदैव और अभी भी ईश्वर का आश्रय लिये हुए है, तथा धर्म एवं आध्यात्मिकता के अमूल्य भण्डार का अनुसरण करता आया है।

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