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शक्तिदायी विचार

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :57
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9601

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ये विचार बड़े ही स्फूर्तिदायक, शक्तिशाली तथा यथार्थ मनुष्यत्व के निर्माण के निमित्त अद्वितीय पथप्रदर्शक हैं।


•    सब से पहले हमारे तरुणों को मजबूत बनना चाहिए। धर्म इसके बाद की वस्तु है। मेरे तरुण मित्रों! शक्तिशाली बनो, मेरी तुम्हें यही सलाह है। तुम गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के द्वारा ही स्वर्ग के अधिक समीप पहुँच सकोगे। ये कुछ कड़े शब्द हैं, पर मै उन्हें कहना चाहता हूँ, क्योंकि मै तुम्हें प्यार करता हूँ। मै जानता हूँ कि काँटा कहाँ चुभता है। मुझे इसका कुछ अनुभव है। तुम्हारे स्नायु और मांसेपशियाँ अधिक मजबूत होने पर तुम गीता अधिक अच्छी तरह समझ सकोगे। तुम, अपने शरीर में शक्तिशाली रक्त प्रवाहित होने पर, श्रीकृष्ण के तेजस्वी गुणों और उनकी अपार शक्ति को अधिक समझ सकोगे। जब तुम्हारा शरीर मजबूती से तुम्हारे पैरों पर खडा रहेगा और तुम अपने को ‘मनुष्य’ अनुभव करोगे, तब तुम उपनिषद् औऱ आत्मा की महानता को अधिक अच्छा समझ सकोगे।

•    ‘मनुष्य’ - केवल ‘मनुष्य’ ही हमें चाहिए, फिर हरएक वस्तु हमें प्राप्त हो जाएगी। हमें चाहिए केवल दृढ़ तेजस्वी, आत्मविश्वासी तरुण - ठीक ठीक सच्चे हृदयवाले युवक। यदि सौ भी ऐसे व्यक्ति हमें मिल जाएँ, तो संसार आन्दोलित हो उठेगा - उसमे विशाल परिवर्तन हो जाएगा।

•    इच्छाशक्ति ही सब से अधिक बलवती है। इसके सामने हर एक वस्तु झुक सकती है, क्योंकि वह ईश्वर और स्वयं ईश्वर से ही आती है; पवित्र औऱ दृढ़ इच्छाशक्ति सर्वशक्तिमान है। क्या तुम इसमें विश्वास करते हो?

•    हाँ, मैं जैसे-जैसे बड़ा होता जाता हूँ वैसे ही वैसे मुझे सब कुछ ‘मनुष्यत्व’ में ही निहित मालूम पड़ता है। यह मेरी नयी शिक्षा है। बुराई भी करो, तो ‘मनुष्य’ की तरह। यदि आवश्यक ही हो, तो निर्दयी भी बनो, पर उच्च स्तर पर।

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