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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


इन हालतों में जमुना की माँ ने तन्ना को बहुत सहारा दिया। उनके यहाँ पूजा-पाठ अक्सर होता रहता था और उसमें वे पाँच बंदर और पाँच क्वाँरी कन्याओं को खिलाया करती थीं। बंदरों में तन्ना और कन्याओं में उनकी बहनों को आमंत्रण मिलता था और जाते समय बुआ साफ-साफ कह देती थीं कि दूसरों के घर जा कर नदीदों की तरह नहीं खाना चाहिए, आधी पूड़ियाँ बचा कर ले आनी चाहिए। वे लोग यही करते और चूँकि पूड़ी खाने से मेदा खराब हो जाता है अत: बेचारी बुआ पूड़ियाँ अपने लिए रख कर रोटी बच्चों को खिला देतीं।

तन्ना को अक्सर किसी-न-किसी बहाने जमुना बुला लेती थी और अपने सामने तन्ना को बिठा कर खाना खिलाती थी। तन्ना खाते जाते और रोते जाते क्योंकि यद्यपि जमुना उनसे छोटी थी पर पता नहीं क्यों उसे देखते ही तन्ना को अपनी माँ की याद आ जाती थी और तन्ना को रोते देख कर जमुना के मन में भी ममता उमड़ पड़ती और जमुना घंटों बैठ कर उनसे सुख-दु:ख की बातें करती रहती। होते-होते यह हो गया कि तन्ना के लिए कोई था तो जमुना थी और जमुना को चौबीसों घंटा अगर किसी की चिंता थी तो तन्ना की। अब इसी को आप प्रेम कह लें या कुछ और!

जमुना की माँ से बात छिपी नहीं रही, क्योंकि अपनी उम्र में वे भी जमुना ही रही होंगी - और उन्होंने बुला कर जमुना को बहुत समझाया और कहा कि तन्ना वैसे बहुत अच्छा लड़का है पर नीच गोत का है और अपने खानदान में अभी तक अपने से ऊँचे गोत में ही ब्याह हुआ है। पर जब जमुना बहुत रोई और उसने तीन दिन खाना नहीं खाया तो उसकी माँ ने आधे पर तोड़ कर लेने का निर्णय किया यानी उन्होंने कहा कि अगर तन्ना घर-जमाई बनना पसंद करे तो इस प्रस्ताव पर गौर किया जा सकता है।

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