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सूरज का सातवाँ घोड़ा

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :147
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9603

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'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक कहानी में अनेक कहानियाँ नहीं, अनेक कहानियों में एक कहानी है। वह एक पूरे समाज का चित्र और आलोचन है; और जैसे उस समाज की अनंत शक्तियाँ परस्पर-संबद्ध, परस्पर आश्रित और परस्पर संभूत हैं, वैसे ही उसकी कहानियाँ भी।


बेहोश सत्ती को भइया और महेसर उठा कर उसके घर पहुँचा आए और माणिक मुल्ला डर के मारे भइया के कमरे में सोए।

दूसरे दिन चमन ठाकुर के घर पर काफी जमाव था क्योंकि घर खुला पड़ा था, सामान बिखरा पड़ा था, और चमन ठाकुर तथा सत्ती दोनों गायब थे और बहुत सुबह उठ कर जो बूढ़ियाँ गंगा नहाने जाती हैं उनका कहना था कि एक ताँगा इधर से गया था जिस पर कुछ सामान लदा था, चमन ठाकुर बैठा था और आगे की सीट पर सफेद चादर से ढका कोई सो रहा था जैसे लाश हो।

लोगों का कहना था कि चमन और महेसर ने मिल कर रात को सत्ती का गला घोंट दिया।

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