लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

26 पाठक हैं

आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ

 

गर्मी

तन ये सारा फूंक दिया
मन मेरा झकझोर दिया
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तूने झुलसा दिया।

खिलने वाला प्रसून बाग में
अधखिला सा रहने लगा
मीठा बोलने वाला पंछी
कर्कश वाणी में चहकने लगा।

कंठ सूखा है सभी का
जलाशयों को तूने जला दिया।
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तूने झुलसा दिया।

पेड़ों की शीतल छाया भी
रहने लगी है गर्म भी
पत्ते सूख कर गिरने लगे
उड़ते हैं बन कर चिट्ठी।

इतनी गर्म हवाओं ने
जीना दुभर है कर दिया।
गिराकर ऐसे सीधी गर्मी
सबकुछ तूने झुलसा दिया।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book