लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा

उजला सवेरा

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :96
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9605

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

26 पाठक हैं

आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ


गरीब की आंखें

मलिन सा चेहरा
गिरती उठती होले-होले
तन पर फटे हुए कपड़े
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

गरीबी की अकड़ ने
तोड़ कर रख दिए कंधे
टेढे मेढे बिखरे बाल
निस्तेज निष्ठूर गोले गाल
गड्ढों में धंसती हुई सी।
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

लक्ष्य बिंदु पर अटकी सी
ज्यों दे रही हो चुनौती
हर तूफां से लडऩे की
सहमी दुख झेलने वाली
जरूर ये आंखें
किसी गरीब की हैं।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai