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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका


स्वामी विवेकानन्द का केन्द्रीय सन्देश क्या था?
स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों, वार्तालापों, पत्रों तथा कविताओं के रूप में उनके जीवन की कृति 'विवेकानन्द-साहित्य' के नाम से दस खण्डों मे (अद्वैत आश्रम, कलकत्ता से) प्रकाशित हुई है। क्या स्वामीजी का कोई ऐसा केन्द्रीय सन्देश भी है, जो इन दस खण्डों में व्याप्त हो? आइए हम स्वामीजी की अपनी ही वाणी का श्रवण करें - ''मेरा आदर्श अवश्य ही कुछ शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है और वह है - मानव-जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना।'' मनुष्य की आन्तरिक दिव्यता ही स्वामीजी का मूलभूत सन्देश था। उनका निम्नलिखित प्रसिद्ध उद्धरण व्यक्तित्व-विकास में हमारा मूलमंत्र बन सकता है - ''प्रत्येक जीव अव्यक्त ब्रह्म है। बाह्य तथा आन्तरिक प्रकृति को वशीभूत करके अपने अन्तर्निहित देवत्व को प्रकट करना ही जीवन का लक्ष्य है।''

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