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यादें (काव्य-संग्रह)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


मेरा जीवन


मेरा जीवन निरसतामय
सुखी सभी नजर आते हैं,
हंसते खिलते मुस्कुराते हुए
प्रसन्नतायुक्त नजर आते हैं।

लेकर हँसी खुशी का मंजर
और लेकर मैं सलोने सपने
निकला था एक दिन कभी
सुगम अनजाने पथ पर मैं

मुझे पता था क्या वहाँ पर
अँधड़ भूचाल भी आते हैं।
मेरा जीवन निरसतामय
सुखी सभी नजर आते हैं।

कंटकयुक्त राहें बनी
अँधकार सा छाया हुआ
दुखों के बादल घिर आये
मन कंपित सा होने लगा

दस्तक दे दरवाजे पर
क्यों दुख अन्दर आ जाते हैं।
मेरा जीवन निरसतामय
सुखी सभी नजर आते हैं।

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