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यादें (काव्य-संग्रह)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


मेरे गीत


मेरे गीत तुम्हारे पास
स्वर मांगने आयेंगे।
कंठ पर तुम्हारे ये गीत
खेलेंगे और लहरायेंगे।

माना मेरे गीतों में
सुर है ना ताल है,
तभी तो मेरे गीतों का
हाल हुआ बेहाल है

मगर अब ये गीत मेरे
फिर से मुस्कुरायेगें।
मेरे गीत तुम्हारे पास
स्वर मांगने आयेंगे।

गीतों में मेरे कुछ नहीं
ना शब्द है, ना स्वर कोई
ऐसे गीतों को कंठ पर
उतार लो तुम यदि

मेरे गीत फिर से ये
सबके होंठों पर आयेंगे।
मेरे गीत तुम्हारे पास
स्वर मांगने आयेंगे।

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