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यादें (काव्य-संग्रह)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607

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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


अमीर और गरीब


अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।

अमीर चैन की नींद सोता है
गरीब रात भर जागकर
पहरा अमीरों का देता है।
सुविधा के इस दौर में तो
हर सुविधा अमीर के पास होती है।
सोने के लिए उसके नीचे
मुलायम गद्दे होते हैं।
रहने के लिए पूरा महल
खाने के लिए बहुत सा माल
सर्दी हो या हो गर्मी
लेते हैं मजा पूरा साल।
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।

गरीब तो गरीब है
उसका क्या होगा हाल
मँहगाई की वजह से तो
गरीब का जीना हुआ बेहाल
खाने पीने की तो पूछो मत
जब धरती ही उसका बिस्तर है होता
अमीर पथ पर अग्रसर है
गरीब और गरीब हो चला
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।

यदि किसी अमीर की
चीर जाये कभी जो ऊंगली
कर देते जमीन आसमान एक
मगर गरीब का तन तो
क्षत-विक्षत होने पर भी
उतना ही काम करता है
अमीर के लिए आँसू बहाते हैं सभी
कोई गरीब की तरफ नहीं देखता
अमीर और गरीब में
बस फर्क है इतना।

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