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श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9644

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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में

सप्तशती न्यास विधि

विनियोग- प्रथम मध्यम उत्तम चरित के ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र ऋषि, श्री महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती देवता, गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप छन्द, अग्नि, वायु सूर्य तत्व, ऋक्, यजु, सामवेद ध्यान है। सभी कामनाओं की सिद्धि तथा श्री महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती देवता की प्रीति के लिए पाठ में विनियोग है।

करन्यास

ॐ खंगिनि सूलिनि चक्रिनि घोरा।
गदिनि शंखिनी बान कठोरा।।
धनुधारिनि कर परिघा धारे।
पुनि भुसुंडि ये अस्त्र तिहारे।।
अंगुष्ठाभ्याँ नमः।

ॐ दक्षिण पश्चिम सूल लै, कर में लिए कृपान।
घण्टा ध्वनि करि रक्ष मां करिके सर संधान।।
तर्जनीभ्यां नम:।

ॐ दक्षिण पश्चिम पूर्व में, रक्ष चण्डिका मातु।

कर त्रिसूल ले विचरि मां, ईस्वरि उत्तर पातु।।
मध्यमाभ्यां नम:।

ॐ विचरत तीनहुं लोक तव, रूप मृदुल अरु घोर।

तिन रूपनि ते रक्ष मां, लोक सकल पुनि मोर।।
अनामिकाभ्यां नम:।

ॐ गदा खंग तिरसूल अरु अस्त्र सस्त्र बहु धारि।

कर पल्लव लै चंहु दिसनि राखहु इहै गुहारि।।
कनिष्ठिकाभ्यां नम:।

ॐ सर्व रूप सर्वेस्वरी, सकल शक्ति संयुक्त।

दुर्गा देवि नमो नमो, कर मां भय से मुक्त।।
करतलकरपृष्ठाभ्यां नम:।

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