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श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655

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श्रीकृष्ण चालीसा


धर्मपुत्र जब द्रौपदी हारी,
परबस हुई आन वेचारी।
पापी नगन करन जब लागे,
रुदन किया उस आपके आगे।।19।।

उसके आपने चीर बढ़ाये,
दुर्योधन जैसे लज्जाए।
कृपा आपकी जिस पर होवे,
जन तेरा काहे को रोवे।।20।।

जय जय द्रौपदी कष्ट निवारण,
जय जय पाँडव भक्त उभारन।
जय जय जय दीनन हितकारी,
जय जय बाल मुकुंद गिरधारी।।21।।

जय अच्युत जय जय असुरारी,
जय जय चक्र सुदर्शन धारी।
जय ईश्वर जय सर्व व्यापक,
जय योगेश्वर जय प्रतिपालक।।22।।

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