लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> आत्मतत्त्व

आत्मतत्त्व

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :109
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9677

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

27 पाठक हैं

आत्मतत्त्व अर्थात् हमारा अपना मूलभूत तत्त्व। स्वामी जी के सरल शब्दों में आत्मतत्त्व की व्याख्या


यहाँ यह शीशे का गिलास है। मान लो इसके हम टुकड़े- टुकड़े कर दें, इसे पीस डालें, और रासायनिक पदार्थों की मदद से इसका प्राय: उन्मूलन-सा कर दें, तो क्या इस सब से वह शून्य में जा सकता है? कदापि नहीं। आकार नष्ट हो जायगा, किन्तु जिन परमाणुओं से वह निर्मित है, वे बने रहेंगे, वे हमारी ज्ञानेन्द्रियों से परे भले ही हो जायँ, परन्तु वे बने रहते हैं। और यह नितान्त सम्भव है कि इन्हीं पदार्थों से एक दूसरा गिलास भी बन सके। यदि यह बात एक दृष्टान्त के सम्बन्ध में सत्य है, तो प्रत्येक उदाहरण में भी सत्य होगी। कोई वस्तु शून्य से नहीं बनायी जा सकती। न कोई वस्तु शून्य में पुन: परिवर्तित की जा सकती है। यह सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, और फिर स्थूल से स्थूलतर रूप ग्रहण कर सकती है। वर्षा की बूँद समुद्र से निकलकर भाप के रूप में ऊपर उठती है और वायु द्वारा पहाड़ों की ओर परिचालित होती है, वहाँ वह पुन: जल में बदल जाती है और सैकड़ों मील बहकर फिर अपने जनक समुद्र में मिल जाती है। बीज से वृक्ष उत्पन्न होता है। वृक्ष मर जाता है, और केवल बीज छोड़ जाता है। वह पुन: दूसरे वृक्ष के रूप में उत्पन्न होता है, जिसका पुन: बीज के रूप में अन्त होता है और यही क्रम चलता है।

एक पक्षी का दृष्टान्त लो, कैसे वह अण्डे से निकलता है, एक सुन्दर पक्षी बनता है, अपना जीवन पूरा करता है और अन्त में मर जाता है। वह केवल भविष्य के बीज रखनेवाले कुछ अण्डों को ही छोड़ जाता है। यही बात जानवरों के सम्बन्ध में सत्य है, और यही मनुष्यों के सम्बन्ध में भी। लगता है कि प्रत्येक वस्तु, कुछ बीजों से, कुछ प्रारम्भिक तत्त्वों से अथवा कुछ सूक्ष्म रूपों से उत्पन्न होती है और जैसे-जैसे वह विकसित होती है, वैसे-वैसे स्थूलतर होती जाती है, और फिर अपने सूक्ष्म रूप को ग्रहण करके शान्त पड़ जाती है। समस्त विश्व इसी क्रम से चल रहा है। एक ऐसा भी समय आता है, जब यह सम्पूर्ण विश्व गलकर सूक्ष्म हो जाता है, अन्त में मानो पूर्णतया विलुप्त जैसा हो जाता है, किन्तु अत्यन्त सूक्ष्म भौतिक पदार्थ के रूप में विद्यमान रहता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book