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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

गो सेवा का चमत्कार

यह घटना दिनांक 2-9-2001 रविवार की है। अनन्त चतुर्दशी का दूसरा दिन होने के कारण सैकड़ों अन्य व्यक्तियों की तरह हम भी सपरिवार ओंकारेश्वर (ग्राम मान्धाता) में नर्मदाजी में गणेश प्रतिमा विसर्जन हेतु गये हुए थे। नर्मदाजी के घाट पर व्यापक जनसमूह था, इसलिए हम नाव से त्रिवेणी के पास एक सुरम्य, स्वच्छ जगह पर गये। परिवार के कुछ सदस्यों ने स्नान आरम्भ कर दिया था और शेष तैयारी कर रहे थे। इस समय लगभग 5 बज रहे थे। मैंने भी स्नान हेतु नदी में धीरे-धीरे प्रवेश किया।

मेरे एक साथी संजय जो वहाँ स्नान कर रहे थे, उन्होंने कहा - तू आगे मत जा, यहीं पर नहा ले, पर मैं आगे जाकर पानी में खड़ा हो गया। इस स्थान पर बमुश्किल  3 फीट पानी था। परिवारजन और मित्र मुझसे डुबकी लगा लेने को कह रहे थे, पर मैं ठण्ड की वजह से पानी में खड़ा रहा। मित्रों ने पानी छिड़क कर मुझे भिगो दिया।

बार-बार आग्रह सुनकर मैंने भी डुबकी लगाने का मन बना लिया और संजयजी का हाथ पकड़कर डुबकी लगाने हेतु मैं जैसे ही झुका, नर्मदाजी के तेज प्रवाह की चपेट में आ गया। मैं और मेरे मित्र लगभग 30 फीट तक साथ में बहे और पानी के अन्दर ही हम बाहर निकलने की चेष्टा करने लगे, इसी चेष्टा में मेरा हाथ छूट गया और मैं अनवरत बहता चला जा रहा था, पानी का बहाव अत्यन्त तेज था। मैं सिहर उठा और मुझे अपना अन्त नजदीक आते हुए दिखाई पड़ने लगा, इस घोर निराशा के अन्धकार में अचानक नदी के उछाल से मुझे सूर्य देवता नजर आये और क्षणमात्र में, मैं पुन: जलमग्न होने लगा। इस उछाल से मुझमें इस आशा का संचार हुआ कि मैं बच सकता हूँ अगर अगले उछाल के द्वारा मैं सांस ले लूँ तो मैंने ऐसा ही किया, किन्तु तीसरी बार मैं उछाल की राह ही देखता रहा और पानी के अन्दर ही अन्दर बहने लगा।

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