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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

चमत्कारी भिक्षापात्र

एक फकीर था। वह एक समाट के महल में गया। समाट ने उसे निमन्त्रण जो दिया था। फकीर अपना छोटा-सा भिक्षा पात्र लेकर दरबार में पहुँचा और बोला, 'मुझे भिक्षा दे दो, मैं चला जाऊँगा।'

सम्राट ने कहा- 'पहले कुछ विश्राम करिए, कुछ जलपान करिये, फिर आपको अवश्य भिक्षा मिलेगी।''

फकीर ने कहा- 'जलपान करूँगा तो आपको मेरी शर्त माननी होगी।''

सम्राट ने कहा, 'कौन सी शर्त है आपकी। कहिए, अवश्य पूरी होगी।'

'मेरा यह छोटा-सा भिक्षापात्र मुद्राओं से भरना होगा।'

सम्राट ने कहा, ''अवश्य, हम सम्राट हैं। क्या इस छोटे से भिक्षापात्र को हम नहीं भर सकेंगे?

फकीर ने जलपान किया। सम्राट ने मन्त्री से कहा- ''इस भिक्षा-पात्र को मुद्राओं से भर दो।''

मन्त्री एक थाल में मुद्राएँ लाया और भिक्षापात्र में डालने लगा। परन्तु भिक्षापात्र भर ही नहीं रहा था। सम्राट और मन्त्री आश्चर्य में पड़ गये। उस जादुई भिक्षापात्र को देखने के लिए प्रजाजन उमड़ पड़े। महल में हलचल मच गई। दूसरे राजाओं के यहाँ से भी हीरे-जवाहरात मँगाये गये उस चमत्कारी भिक्षा पात्र में डालने के लिए, लेकिन भिक्षापात्र खाली था। शर्त पूरी नहीं हुई।

अन्त में सम्राट ने फकीर से पूछा- 'इस जादुई भिक्षापात्र में ऐसी कौन-सी जादुई शक्ति है, जो इतनी मुद्राएँ डालने पर भी भरता नहीं है। कृपया, बतलाइए कि इसका क्या कारण है? हम जानना चाहते हैं।

फकीर ने कहा- ''मैंने इस भिक्षापात्र को मनुष्य के हृदय से बनाया है, जो कभी भरेगा नहीं। मनुष्य को जितना भी दिया जाए, उसका मन और भी प्राप्त करना चाहता है, उसे सन्तोष नहीं होता है। अब आगे तुम समझ सकते हो।'' यह कहकर फकीर चला गया।

राजा को पूरी वात समझ में आ गई।

¤ ¤    सुधांशु नीमा

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