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बृहस्पतिवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :28
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9684

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बृहस्पतिदेव की प्रसन्नता हेतु व्रत की विधि, कथा एवं आरती


एक रोज राजा ने विचार किया कि चलो अपनी बहन के यहाँ हो आयें। इस तरह निश्चय कर राजा घोड़े पर सवार होकर अपनी बहन के यहाँ को चलने लगा। रास्ते में उसने देखा कि कुछ आदमी एक मुर्दे को लिए जा रहे हैं। उन्हे रोककर राजा कहने लगा, “अरे भाइयों ! मेरी बृहस्पति देव की कहानी सुन लो। ”

वे लोग बोले कि हमारा तो आदमी मर गया है, इसको अपनी कथा की पड़ी है। परन्तु कुछ आदमी बोले, “अच्छा कहो ! हम तुम्हारी कथा भी सुनेंगे।”

राजा ने दाल निकाली और जब कथा आधी हुई थी कि मुर्दा हिलने लग गया।और जब कथा समाप्त हुई तो मुर्दा राम-राम करके खड़ा हो गया। आगे मार्ग में उसे एक किसान खेत में हल चलाता मिला। राजा उसे देखकर बोला, “अरे भइया ! तुम मेरी बृहस्पति वार की कथा सुन लो।”

किसान बोला, “जब तक मैं तेरी कथा सुनूंगा उतनी देर में चार हरइया जोत लूंगा। जा अपनी कथा किसी और को सुनाना”

इस तरह राजा आगे चलने लगा। राजा के हटते ही बैल पछाड़ खाकर गिर गये तथा किसान के पेट में बड़ी जोर का दर्द होने लगा। उस समय किसान की माँ रोटी लेकर आई। उसने जब यह देखा तो अपने पुत्र से सब हाल पूछा और बेटे ने सभी हाल कह दिया। तब बुढ़िया दौड़ी दौड़ी उस घुड़सवार के पास गई और उससे बोली कि मैं तेरी कथा सुनूंगी। तू अपनी कथा मेरे खेत पर चलकर ही कहना। राजा ने बुढ़िया के खेत पर जाकर कथा कही, जिसके सुनते ही वे बैल उठकर खड़े हो गये तथा किसान के पेट का दर्द बन्द हो गया।

राजा अपनी बहन के घर पहुँचा। बहन भाई की खुब आवभगत की। दूसरे दिन प्रातःकाल राजा जगा तो उसने देखा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं। राजा ने अपनी बहन से कहा, “ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन न किया हो,वह मेरी बृहस्पतिवार की कथा सुन ले।”

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