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बृहस्पतिवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :28
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9684

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बृहस्पतिदेव की प्रसन्नता हेतु व्रत की विधि, कथा एवं आरती


बहन बोली, “हे भइया ! यह देश ऐसा ही है। पहले .हाँ लोग भोजन करते हैं, बाद में अन्य काम करते हैं। अगर कोई पड़ोस हो तो देख आऊं।” वह ऐसा कहकर देखने चली गई। परन्तु उसे कोई व्यक्ति ऐसा नहीं मिला जिसने भोजन न किया हो। अन्त में वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़ा बीमार था। उसे मालूम हुआ कि उसके यहाँ तीन दिन से किसी ने भोजन नहीं किया है। बहन ने अपने भाई की कथा सुनने के लिए कुम्हार से कहा तो वह तैयार हो गया।

राजा ने जाकर बृहस्पतिवार की कथा कही, जिसको सुनकर उसका लड़ा ठीक हो गया। अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी।

एक रोज राजा ने अपनी बहन से कहा कि हे बहन ! हम अपने घर को जायेंगे, तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपनी सास से कहा तो सास ने कि हाँ चली जाओ। परन्तु अपने लड़कों को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई को कोई औलाद नहीं है। बहन ने अपने भाई से कहा, “हे भइया ! मैं तो चलूंगी परन्तु कोई बालक नहीं जायेगा।”

राजा बोला कि जब कोई बालक नहीं चलेगा तो तुम क्या करोगी। बड़े दुखी मन से राजा अपने नगर को लौट आया। राजा ने अपनी रानी से कहा, “हम निर्वंशी राजा हैं हमारा मुख देखने का धर्म नहीं है।” और कुछ भोजन आदि नहीं किया।

रानी बोली, “बृहस्पतिदेव ने हमें सब कुछ दिया है तो हमें औलाद अवश्य देंगे।”

उसी रात को स्वप्न में बृहस्पतिदेव राजा से कहा, “हे राजा ! उठ सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भवती है।”

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