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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

पाँच

समर्थ को नहीं दोष गुसाईं

 9685_05

पुलिस ने अड़ोस-पड़ोस में पूछताछ शुरू की।

बगल की चाल के सामने जो चौगान था, वहाँ उस रात एक फिल्म का शो हो रहा था। सभी पड़ोसी वहीं गये हुए थे। एक पडोसन ने सुनन्दा से भी चलने का आग्रह किया था, किन्तु वह बोली थी, 'अभी वह आये नहीं हैं। आ जायें, फिर हम दोनों साथ ही आ पहुँचेंगे।''

'उस वक्त सुनन्दा का मूड कैसा था?'

खुश ही थी। केवल.......... प्रवीण भाई के न आने के कारण जरा उलझी हुई थी, बस।

''आपने कभी मियां-बीबी के बीच झगड़ा होते देखा या सुना?''

कभी नहीं। उनके जैसा प्यार तो यहाँ किसी मियाँ-बीबी में न होगा। हमेशा कबूतरों की जोड़ी की तरह गुटरूँ-गूँ किया करते।

प्रवीण ने जिसके यहाँ फोन किया था, उस चुन्नीलाल को बुलाया गया। वह आया। सफेद पाजामे के ऊपर उसने नायलोन की कीमती, सफेद बनियान पहन रखी थी। गले में सोने की मोटी चेन। हाथ की चारों उँगलियों में सोने की चमचमाती अँगूठियाँ। इन सबसे न केवल उसकी अमीरी, बल्कि प्रदर्शन की मनोवृत्ति भी साफ झलक रही थी। मैक्रोपोलो सिगरेट का सुगन्धित धुआँ उडाता हुआ वह आ पहुँचा। राब-इन्स्पेक्टर से उसने ऐसे मुरकराकर हाथ मिलाया, जैसे उन दोनों के बीच पहले से पुराना परिचय हो।

चुन्नीलाल बोला, ''ऐसा है, गोखले साहब। होना था, सो हो चुका। अब इन बेचारे गरीबों को ख्वाहमख्वाह के लफड़े में न डालियेगा। सीधे-सादे लोग हैं मुश्किल से जी रहे है। इन्हें थाने के चक्कर न लगाने पडें, यह देखना आपका काम है। मुझे तो लगता है, सुनन्दा ने किसी गफलत में जहरीली दवा पी डाली। प्रवीण भाई पर जो दुःख का पहाड़ टूट पड़ा है, उसे मैं ही समझ सकता हूँ। ऊपर से आप उसे पुलिस के चक्कर में न डालियेगा।''

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