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चमत्कारिक पौधे

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :227
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9687

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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।

इसे संस्कृत में केशव, हिन्दी में मोलसरी या बकुल, बंगाली में गाछ, गुजराती में बोलसरी पंजाबी में मौलसरी, तमिल में अलांगु केसारम तथा लेटिन में माईमूसॉप्स इलैंजाई (Mimusops elengii) कहते हैं। वनस्पति जगत के सैपोटेसी (Sapotaceae) कुल में यह आता है।

औषधिक महत्त्व

यूँ तो मौलश्री के अनेक औषधिक उपयोग हैं किन्तु उनमें से कुछ प्रमुख निम्नानुसार हैं-

दंत-स्वास्थ्य हेतु- मौलश्री की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से हिलते हुए दाँत जम जाते हैं। यहीं नहीं इसके काढ़े से कुल्ला करने वाले के दाँत सुदृढ़ होते हैं। इसकी नर्म डाल या टहनी से दातून करने से भी दाँत मजबूत होते हैं।

दंत दर्द निवारणार्थ- मौलश्री की छाल के काढ़े में पीपल, शहद और घी मिलाकर कुछ देर तक मुख में रखने पर दाँतों के दर्द में आराम मिलता है। शिरोपीड़ा में- आसवन विधि अथवा भभके के माध्यम से मौलश्री के पुष्पों का अर्क निकाल लें। यह अर्क सुगन्धित होता है। इस अर्क को शिरोपीड़ा की स्थिति में सिर पर लगाने से त्वरित लाभ होता है।

फोड़े-फुन्सी. घाव आदि पर- घाव इत्यादि को सुखाने हेतु अथवा फोड़े-फुन्सियों के उपचारार्थ मौलश्री के फल-फूल एवं छाल को सुखाकर उनका चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को घी में मिलाकर संबंधित स्थान पर लगाने से घाव, फोड़ा-फुन्सी आदि ठीक होते हैं।

आँब दस्त दूर करने हेतु- मौलश्री की मेंगनियो अर्थात बीजों के तेल की  2 बूँद मात्रा बताशे में लेकर सेवन करने से 3 दिनों में आँव-दस्त जाते रहते हैं।

दंत एवं मसूदों की मजबूती हेतु- मौलश्री के फलों को चबाने से दाँत एवं मसूढ़े मजबूत होते हैं।

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