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चमत्कारिक पौधे

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :227
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9687

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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।


वृक्षों के रोपण हेतु कुछ खास बातें

वैसे तो पुस्तक में वर्णित विभिन्न पौधों का वास्तु की दृष्टि से घर की सीमा में जिस विशिष्ट दिशा में होने का निर्देश है वह वहीं लिख दिया गया है फिर भी -

पौधों के सम्बन्ध में निम्न विशिष्ट बिन्दु और भी ध्यान रखने चाहिये-

कुम्भश्रीपर्णिवल्ली भिर्मूल द्वारं तु शोभेयत।
पूजयेव्धापि तान्निंत्यं बलिना वाक्षतोदकै:।।

अर्थात- घट, श्रीपर्णी और लताओं से मूलद्वार को सदैव सुशोभित रखना चाहिए और उसकी नित्य बलि, अक्षत और जल से पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से उस स्थान के रहवासी शांति एवं सुख का अनुभव करते हैं।

इसी प्रकार वृक्षों के शुभाशुभ सम्बन्ध में शास्त्रों के आधार पर निम्नांकित बातें भी महत्वपूर्ण हैं-

0 किसी भी रहवासी भवन अथवा फैक्ट्री में उद्यान अथवा वृक्षों का उसकी सीमा में उत्तर अथवा पश्चिम दिशाओं में होना शुभ है।

उपरोक्त वृक्षारोपण पूर्व या पश्चिम दिशाओं में बढ़ने पर प्रतिकूलता लाता है। इसी प्रकार पौधों को भूखण्ड सीमा में मात्र दक्षिण अथवा पूर्व या पूर्व तथा दक्षिण दिशाओं में लगाना भी प्रतिकूल प्रभाव देता है।

0 आग्नेय कोण तथा नैऋत्य कोण पर वृक्षों का रोपण शुभ नहीं होता अत: इन कोणों पर वृक्षों का रोपण कतई न हो।

0 कोई भी पौधा घर के मुख्य द्वार के समक्ष न रोपें। यह ''द्वार-बेध'' का निर्माण करता है, अत: प्रतिकूलता दर्शाता है।

0 घर के द्वार और पिछवाड़े को मिलाने वाले घर के माध्यमिक अक्ष तथा उसके समकोणीय अक्ष की ठीक सीध में भी किसी पौधे का रोपण न करें। ऐसे पौधे प्रतिकूलता देते हैं।

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