लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज

देहाती समाज

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :245
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9689

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

80 पाठक हैं

ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास

8

'ताई जी!'

'रमेश बेटा! चले आओ भीतर!'

विश्वेेश्व री ने झटपट, उसके बैठने को एक चटाई बिछा दी। अंदर पैर रखते ही, वहीं पर बैठी एक दूसरी स्त्री पर उसकी नजर पड़ी, जिसके मुँह पर नजर पड़ते ही वह समझ गया कि वह रमा है! उसे देख कर वह चकित रहा गया। तुरंत ही मौसी द्वारा ताई जी के अपमान की बात याद आते ही, गुस्से से भर उठा वह।

रमेश के इस तरह एकाएक आ जाने से, रमा भी अजीब संकट में फँस गई थी। अन्य कारणों के अलावा एक यह भी कारण था उसके इस तरह संकोच करने का कि रमेश से उसका एक दूसरा ही संबंध होनेवाला था। उस कारण से, एक बिलकुल अपरिचित की तरह पर्दा करने में भी उसे संकोच होता था, और न करते ही बनता था। मछलियों का झगड़ा अभी थोड़े ही दिन पहले हो चुका था। रमेश भी उसकी ओर बिना धयान दिए, चटाई पर ही एक तरफ बैठ गया और बोला-'ताई जी!'

'दोपहर में कैसे भूल पड़े इधर?'

'दोपहर को न आऊँ तो कब आऊँ? और तो जब कभी आता हूँ, तो काम में लगी रहती हो, एक मिनट बैठने भी नहीं पाता तुम्हारे पास!'

विश्वेंश्वहरी ने जरा हँसकर, उसके इस वाक्य की सत्यता को स्वीकार कर लिया।

रमेश ने मुस्कराते हुए कहा-'ताई जी! एक बार छोटेपन में, यहाँ से जाते समय तुमसे विदाई लेने आया था; वैसे ही आज भी विदा लेने ही आया हूँ, और संभवतः यही अंतिम विदाई भी हो!'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book