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हमारे बच्चे - हमारा भविष्य

स्वामी चिन्मयानंद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :31
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9696

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वर्तमान में कुछ काल और जुड़ जाने पर भविष्य बन जाता है। वर्तमान तथा कुछ समय ही भविष्य है।

यही कारण है कि राजनीति के क्षेत्र में, समाज के क्षेत्र में. आर्थिक क्षेत्र में यहां तक कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत का योगदान शून्य के बराबर है। हम अपने वर्तमान काल की दशा देखकर गौरवान्वित नहीं हो सकते।

हमारा इतना पतन कैसे हो गया? क्या हमने अपनी वर्तमान पीढ़ी की उस समय उपेक्षा नहीं की है जब वे केवल बच्चे थे? पूर्व काल की उस उपेक्षा के ही कारण ही आज का संसार कलुषित हो गया है, बडी ही दयनीय और दुःखद स्थिति आ गयी है।

क्या आप चाहते हैं कि भविष्य में भी अपना देश स्वार्थ और मूर्खता के जाल में फंसा रहे? अथवा आप अपने बच्चों को रहने के लिए भविष्य में सुन्दर संसार देना चाहेंगे?

अभी तो हम सब परेशानी में है। इस परिस्थिति से हम तत्काल बाहर नहीं निकल सकते। चुटकी बजाते कोई काम नहीं हो जाता। हम किसी क्रान्ति की कल्पना नहीं कर रहे हैं। हमारे देश का सांस्कृतिक विकास होना चाहिए। सामाजिक स्तर ऊपर उठे ओर व्यक्तियों का चरित्र सुन्दर बने। यह कार्य धीरे-धीरे होगा। इसलिए भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए हमें अपने बच्चों को सही दिशा में शिक्षा देनी होगी। वे विनाशकारी निषेधात्मक प्रवृत्ति न अपनावें। उनका चिन्तन रचनात्मक हो। क्या हम ऐसा कर सकते हैं?

इस बात को सभी स्वीकार करेंगे कि हमारे बच्चे ही हमारे भविष्य हैं। ठीक है, किन्तु इस विचार को हम कार्यान्वित नहीं कर रहे हैं। कार्यान्वित करने का तरीका भी नहीं समझ पा रहे हैं। केवल कुछ पाठ्य पुस्तकों में परिवर्तन कर देने से काम न चलेगा। समाचार पत्रों में या दूरदर्शन पर मूल्य आधारित शिक्षा प्रारम्भ करने की घोषणा भी अपर्याप्त है। केवल बातों से कुछ काम होने वाला नहीं।

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