ई-पुस्तकें >> हमारे बच्चे - हमारा भविष्य हमारे बच्चे - हमारा भविष्यस्वामी चिन्मयानंद
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वर्तमान में कुछ काल और जुड़ जाने पर भविष्य बन जाता है। वर्तमान तथा कुछ समय ही भविष्य है।
हम नासमझी से अपने बच्चों की उपेक्षा कर रहे हैं। मैं यह नहीं कहता कि हिन्दू लोग ऐसे कूर हैं कि अपने बच्चों की जानबूझ कर दुर्दशा कर रहे हैं। ऐसा नहीं है। किन्तु आप विचार न करने के कारण और वर्तमान समस्या की ओर ध्यान न देने के कारण केवल मशीन की भाँति बच्चे पैदा किये जा रहे हैं। आप का कर्त्तव्य केवल इतना ही है कि आप अगले वर्ष एक वच्चा और पैदा कर दें?
विचार करें। माता या पिता होने का यह अर्थ नहीं है। हम बच्चों को बना-सुधार कर आदर्श रूप दें। वे कल संसार में आने वाली समस्याओं का सामना कर सकें और भावी जगत् का नेतृत्व तथा मार्ग-दर्शन कर सकें। यह बहुत बड़ा दायित्व है। एक बार आप अपनी जिम्मेदारी समझेंगे तो आप अपने बच्चों की देखरेख अधिक समझदारी से करेंगे।
पशु पक्षी भी अपने बच्चों को विधिवत शिक्षा देते हैं। क्या कोई ऐसी चिड़िया है जिसने अपने बच्चे की उपेक्षा की हो और उसे पंख फैलाकर संतुलित रखते हुए उडना न सिखाया हो। चिड़िया-माँ इसके लिए अपना समय लगाती है। मनुष्य तो समझदार प्राणी है। फिर भी वह अपने बच्चों की उपेक्षा करता है।
यह मत कहो कि राजनैतिक स्थिति ही ऐसी है। राजनैतिक या आर्थिक स्थितियों का सामना कौन करता है? मनुष्य ही करते हैं। मनुष्यों ने ही भली-बुरी परिस्थितियां पैदा की हैं। उन्हीं का बनाया हुआ समाज और देश है। आज के पुरुष कभी बच्चे थे। उनका पालन-पोषण ठीक से नहीं हुआ तो उनका चरित्र कलुषित हो गया व्यवहार दूषित हो गया, आचरण भ्रष्ट हो गया और उसके परिणामस्वरूप आज की अव्यवस्था देखने में आ रही है।
इसका उपचार हमारे पास है। हम अपने बच्चों को पर्याप्त प्रेम नहीं दे रहे हैं। उनकी ओर हमारा ध्यान नहीं है। यदि बच्चों में सद्गुण विकसित होते हैं, तो सब कुछ ठीक हो सकता है।
।। समाप्त ।।
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