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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 10 ।

महाबल-सीम, महाभीम, महाबानइत,
महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको ।
कुलिस-कठोरतनु जोरपरै रोर रन,
करुना-कलित मन धारमिक धीरको ।।

दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको,
सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको ।
सीय-सुखदायक दुलारो रघुनायकको,
सेवक सहायक है साहसी समीरको ।।

भावार्थ - आप अत्यन्त पराक्रम की हद, अतिशय कराल, बड़े बहादुर और रघुनाथजी द्वारा चुने हुए महाबलवान् विख्यात योद्धा हैं। वज़्र के समान कठोर शरीरवाले जिनके जोर पड़ने अर्थात् बल करने से रणस्थल में कोलाहल मच जाता है, सुन्दर करुणा एवं धैर्य के स्थान और मन से धर्माचरण करनेवाले हैं। दुष्टों के लिये काल के समान भयावने, सज्जनों को पालनेवाले और स्मरण करने से तुलसी के दुःख को हरनेवाले हैं। सीताजी को सुख देनेवाले, रघुनाथजी के दुलारे ओंर सेवकों की सहायता करने में पवनकुमार बड़े ही साहसी (हिम्मतवर) हैं।।10 ।।

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