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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

प्यार


शौम्या के कंधे पर हाथ रखकर दिवेश ने गहरी आत्मीयता से पूछा- 'शौम्या आज तुम उदास क्यों हो?'

दिवेश तुम्हें अच्छी प्रकार मालूम है कि मैं कुछ भी देख नहीं सकती। तुम्हें सहारा तो क्या दूंगी मैं तो तुमपर बोझ बन जाऊंगी। हमारे और तुम्हारे बीच कोई सम्बन्ध नहीं बन सकता...

'शौम्या यदि शादी के बाद आँखें चली जाएं तो.....?'

'भाबुक मत बनो, देखती आँखों से कोई मक्खी नहीं निगल सकता।' 'तो ठीक है मैं भी तुम्हें पाने के लिए अपनी आँखें गंवा देता हूँ.....।

'नहीं-नहीं'- शौम्या ने अपनी हथेली दिवेश के होठों पर रख दी- 'कम से कम तुम्हारी आँखों से तो हम दुनिया को देख सकेंगे'- कहते कहते वह दिवेश के अधिक करीब आ गयी।

 

० ० ०

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