लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> हौसला

हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

198 पाठक हैं

नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

भिखारी


बाबू हरिन्द्र वैसे तो भिखारियों को भीख देने में विश्वास नहीं रखते परन्तु कोई अपंग खाना मांगे तो वे द्रवित हो जाते।

'बाबू इस लंगड़े सुदामा को दो रोटी खिला दो'- भिक्षुक ने उनके सामने हाथ फैला दिए।

वह ढाबे के पास ही खड़ा था। बाबू हरिन्द्र उसे ढाबे वाले के पास ले गए। ढाबे के मालिक को बीस रुपये देकर भिखारी को रोटी खिलाने को कहा।

'बाबू भगवान तुम्हारा भला करें।' जाते हुए बाबू हरिन्द्र ने सुना। उनके साथ चलते एक स्थानीय आदमी ने कहा- बाबू इनका तो रोज का धंधा है...।

'अरे भाई खाना ही खिलाया है, इसमें तो क्या बुराई है....।' बाबू हरिन्द्र ने अनमने भाव से कहा।

'बाबू यह लंगडा किस-किस का खाना खाएगा। ढाबे वाला सबसे बीस-बीस रुपये ले लेता है और सायं को अपने पांच रुपये काटकर इसको पन्द्रह रुपये दे देता है। फिर रात को चलती है इसकी मीट और शराब। सारे पैसे रात को खर्च कर देता है इसलिए बाबू ये तो इसका रोज का धन्धा है......।

लंगड़े भिखारी को भीख देकर भी बाबू हरिन्द्र संतोष नहीं पश्चाताप कर रहे थे।

 

० ० ०

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book