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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

मंजिल


इस ब्रांच के प्रथम आने पर संस्कार बाबू के सम्मान में समारोह आयोजित किया गया। मंच से जब यह घोषणा हुई कि संस्कार बाबू प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ धावक रहे हैं तो उपस्थित पत्रकार हैरान रह गए कि एक पांव का व्यक्ति श्रेष्ठ धावक.......।

संस्कार बाबू जैसे ही इधर आए पत्रकारों ने घेर लिया। उनके प्रश्नों के जबाव देते हुए संस्कार बाबू ने बताया- कालेज के दिनों में मुझे दौड़ने का शौक था जैसे-जैसे सफलता मिली दौड़ना मेरा जनून बन गया। मैं सदैव सोचता था जब चीता इतनी तेज दौड़ता है तो इंसान क्यों नहीं.....। मैं राज्य का श्रेष्ठ धावक बन गया, परन्तु एक दुर्घटना ने मुझे एक पांव का बना दिया। जीवन में आयी निराशा को दूर करने के लिए एक दिन मेरे गुरु जी ने समझाया:-

मंजिलें उन्हें मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है।

पंखों से कुछ नहीं होता,   हौसलों से उड़ान होती है।।

मैं इस ब्रांच में मात्र एक क्लर्क बनकर आया था और आज आप देख ही रहे हैं, मुझे शाखा प्रबन्धक का प्रथम पुरस्कार मिला है।

आपकी इस सफलता का रहस्य क्या है? इस सवाल का जबाव देते हुए संस्कार बाबू ने बताया - मैंने जीवन में एक सूत्र अपनाया है कि आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहे कितना भी समय लगे तथा आने वाले दिन की तैयारी करके घर जाना..... बस।

सभी पत्रकारों ने तुरंत अपने कैमरे उठा लिए।

 

० ० ०

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