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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

असली विकलांग


बैंक के डी. एम. अग्रवाल के सम्मुख एक ही दिन, एक ही विषय पर दो प्रार्थना पत्र आए। एक प्रबन्धक सक्सेना का तथा दूसरा प्रबन्धक मीणा का। पत्र पढ़कर वे खूब हंसे। दोनों पत्र आपके सामने प्रस्तुत हैं-

''आदरणीय अग्रवाल जी, बैंक में सेवा करने के बदले मुझे वेतन के साथ विकलांग भत्ता भी मिलता है। मैं विकलांग हूँ परन्तु इस भत्ते के बिना भी मेरा घर भली प्रकार चल सकता है। अत: आपसे विनम्रतापूर्वक निवेदन है, इस विकलांग भत्ते को मेरे वेतन से हटा दें ताकि ये अन्य जरूरतमंद विकलांग के काम आ सके। धन्यवाद।''

दूसरा पत्र प्रबन्धक मीणा का था, जिनका वर्षों पूर्व एक हाथ आपरेशन के समय कुछ टेढ़ा जुड़ गया था।

माननीय डी. एम. साहब, कई वर्ष पूर्व मैं एक हाथ से विकलांग हो गया था, जिसका विकलांगता प्रमाण पत्र मैंने संलग्न कर दिया है। उसी के आधार पर मुझे वेतन के साथ विकलांग भत्ता तथा अन्य सुविधाएं देने का कष्ट करें। धन्यवाद।

आपने दोनों पत्र पढ़ लिए अब आप ही फैसला कीजिए असली विकलांग कौन?

 

० ० ०

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