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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

'सहयोग' लघुकथा समाज को स्पष्ट संदेश देती है कि यदि एक अपंग व्यक्ति अपनी अपंगता को दरकिनार कर समाज के काम आता है, तो समाज को भी चाहिए कि उसके साथ सहयोगपूर्ण व्यवहार करे। राजो की डिलीवरी के दौरान उसकी चौदह वर्षीय अपंग लड़की मजदूरी-कानून को धता बताकर डी. अंजना के घर पर काम सम्हालती है। डी. अंजना भी उसे अपनी पढ़ाई चालू करने की शर्त रख देती है। सामाजिक सौहार्द की यह बेहतर रचना है। 'अनहोनी' लघुकथा समाज द्वारा अपंग लोगों से नहीं, अपंग रिश्तेदारों के प्रति भी संवेदनहीनता रखने वाली मानसिकता पर प्रहार करती है। भाई की मृत्यु के बाद दयाशंकर उसकी अनाथ-अपंग लड़की धीरा को घर ले आता है। उसकी पत्नी रीना को धीरा की ओर से हर समय अनहोनी की आशंका बनी रहती है। किन्तु अपंग धीरा ही चोरों को रोकते हुए अपनी जान पर खेलकर भी उनके गहने आदि चोरी होने से बचा लेती है, हालांकि बिखरा सामान देखकर रीना को धीरा पर ही चोरी का संदेह हुआ था। 'टुण्डा छोकरा' लघुकथा भी इसी मानसिकता को उजागर करती है। भीख मांगने वाला अपाहिज छोकरा ही मेमसाहब के गिरे पर्स को वापिस कर देता है, जिसे वह जेबकतरों वाली मानसिकता का लड़का समझ रही थी। लेखक अंत में उस अपंग लड़के का स्वाभिमान दिखाकर मानो मेमसाहब जैसों की मानसिकता पर चोट करता है-'इनाम देने के लिए जैसे ही उसने छोटा नोट निकाला, परन्तु दूर-दूर तक उसे छोकरा दिखाई न दिया।'

इन रचनाओं के शारीरिक रूप से अपंग पात्र कई बार कर्म के साथ-साथ वचन से भी साहसिकता का प्रमाण देते हैं। 'हिम्मत' लघुकथा में रेलवे स्टेशन से निकलती एक युवती के सामान पर एक पुलिस वाला शक करता हुआ उससे अपना हिस्सा मांगता है। वह पोटली खोलकर कहती है-भीख में मांगी पांच दिनों की रोटियां नै बेचण जा थी.... ले ले तू भी अपना हिस्सा.... मनैं ना बैरा था सरकार नै भी जगह-जगह अपने मंगते छोड़ राखै सैं...।'

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