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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

छः


कुछ तो उसे अकेला ही लौटे हुए देखकर और कुछ उसकी बातों के ढंग व हाब-भाब से होटल-मालिक को माधब पर सन्देह होने लगा। होटल के मालिक ने उसकी गति-विधि पर निगरानी रखना शुरू कर दिया।

होटल का मालिक चतुर था। थोड़ी-सी सावधानी बरतने के बाद ही वह जान गया कि माधव ने अपने साथी की हत्या की है। जब उसने हत्या का कारण जानने की कोशिश की तो जीप का निरीक्षण करते समय उसे सन्दूकों के विशाल खजाने के दर्शन भी हो गये। बस फिर क्या था। वह सारी कहानी समझ गया और अपना कर्तव्य भी। उसने निश्चय कर लिया।

जैसे ही बेयरा उसका नाश्ता लेकर जाने लगा कि होटल-मालिक ने उसमें तीब्र विष मिला दिया।

माधव ने नास्ता किया तो उसकी आँखों में नींद घिरने लगी। वह रात भर का जगा हुआ था ही, उसने नींद को स्वाभाविक समझा और लम्बी तानकर आराम से सो गया। उस बेचारे को क्या पता था कि वह चिर-निद्रा की गोदी में जा रहा है!

होटल-मालिक ने जब अच्छी तरह से परीक्षा कर ली कि वह मौत की नींद सो चुका है तो उसके कमरे का ताला बन्द कर दिया और ताली अपने पास सुरक्षित रख ली।

निश्चिन्त होकर उसने जीप में रखे सन्दूकों को देखा। अब उसके सामने करोड़ों रुपये की उस सम्पत्ति को छिपाने का प्रश्न मुँह-बाये खड़ा था।

उसने उस सम्पत्ति को अपने यहाँ छिपाना उचित न समझ कर अपने परम-मित्र लाला घसीटामल के यहाँ ले जाना ठीक समझा। उन्होंने फोन द्वारा अपने आने की सूचना लालाजी को दे दी।

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