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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

 

नौ

 
बैंक मैनेजर को गब्बरसिंह की चिट्ठी मिली तो वह सर-से-पैर तक काँप उठा। उसने तुरन्त पुलिस-अधीक्षक को फोन द्वारा सूचना दी। पुलिस-अधीक्षक ने बैंक-मैनेजर को सांत्वना दी- 'आप बिल्कुल चिन्ता न करें। बैंक की सुरक्षा का भार मेरे ऊपर छोड़कर रोजाना की तरह आराम से काम करते रहें।'

अपने वायदे के अनुसार चौथे दिन पुलिस-अधीक्षक ने बैंक के चारों और सादे वेष में पुलिस तैनात कर दी और स्वयं एक मारवाड़ी सेठ के वेष में बैंक के खजाने के सामने नोटों से भरा हुआ लम्बा थैला हाथ में लटकाए टहलने लगे।

जैसे ही बैंक खुली, अपनी योजना के अनुसार डाकू गब्बरसिंह पुलिस-अधीक्षक की वर्दी में बैक में प्रविष्ट हुए। गब्बरसिंह ने बैंक- मैनेजर के पास जाकर कहा- 'मैनेजर साहब, आज गब्बरसिंह अवश्य आवेगा, आप खजाने में मुझे बैठाइये। मेरे इन्स्पेक्टर और सिपाही बैंक के चारों ओर फैलकर रक्षा करते रहेंगे।'

बैंक-मैनेजर ने खजाना खोलकर उसमें सुपरिटेंडेण्ट बने गब्बरसिंह को घुसा दिया। तभी मारवाड़ी सेठ के वेष में पुलिस-अधीक्षक ने कहा- 'दरोगाजी, खजांची साहब को जल्दी बुलाइये, मुझे चार लाख रुपये जमा कराने हैं।'

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