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खजाने का रहस्य

कन्हैयालाल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9702

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भारत के विभिन्न ध्वंसावशेषों, पहाड़ों व टीलों के गर्भ में अनेकों रहस्यमय खजाने दबे-छिपे पड़े हैं। इसी प्रकार के खजानों के रहस्य

' न बेटे, जी इतना छोटा न करो, यदि तुम जंगल नहीं जाओगे तो शाम का भोजन कहाँ से बनेगा? भगवान तुम्हारी रक्षा करेगा।' किन्तु लड़के ने अपनी बुढ़िया माँ की बात नहीं. मानी और वह अपने कमरे में विछी टटी-सी चारपाई पर पसर गया।' इतना कहकर माधव ने कहानी समाप्त कर दी।

'कहानी का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंश तो आपने बताया ही नहीं।' मुस्कराकर भास्कर जी ने कहा।

'बह कौन-सा अंश है, सर?' माधव ने पूछा।

'अनजान मत मनो माधव। बह अंश आपने जान-बूझ कर नहीं सुनाया है।'

'तो आप सुना डालिए सर।'

'यही कि उस लड़के को अपने छप्पर के नीचे सोये हुए अधिक समय नहीं बीता था कि उसकी खोपड़ी पर छप्पर गिर पड़ा। छप्पर गिर जाने से उसकी खोपड़ी में बाँस की चोट लंगी और खोपड़ी फट गई।' डॉ. भास्कर ने कहानी पूरी कर दी।

डा. भास्कर के जा़न पर माधव मुस्कुराकर रह गया।

माधव बातूनी तो था ही, अपने कहानी और चुटकुलों से डा. साहब का इसी प्रकार भरपूर मनोरंजन करते हुए, यात्रा तय कराता रहा। जंगलों में उन्होंने प्रकृति की अनुपम छटा के दर्शन तो किये ही, साथ ही अनेकों ऐसे जीव-जन्तु देखे, जो उन्होंने पहले कभी-न देखे थे, न सुने। एक जगह उन्होंने गैंडे और हाथी की बहुत भयंकर लड़ाई भी देखी।

दस दिन तक तो उनकी यात्रा निरापद एवं निष्कंटक चलती रही, किन्तु ग्यारेहंवें दिन जब उनकी जीप भयानक जंगल के मध्य से गुजर रही थी तो उन्हें जंगली सुअरों का एक झुण्ड एक झाड़ी में से निकलता हुआ दिखाई दिया। झुण्ड के सुअरों की संख्या लगभग चालीस थी। सुअरों के, झुण्ड ने उनकी जीप की ओर देखा और सभी थूथन उठाकर गुरगुराये। डा. साहब ने सुरक्षा के लिए अपना रिवाल्वर निकाल लिया। माधव भी चौकन्ना हो गया और अपना पिस्तौल उसने भी सँभाल लिया।

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