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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'मैंने डांटा तो गिड़गिड़ाकर मेरे पांव पकड़ लिए और बोला,' साहब से शिकायत न करना। जब मैं न मानी तो धमकी देकर चला गया।'

'क्या?'

'मैं बस्ती वालों से कह दूँगा कि मोहन को भाभी ने स्वयं झील में डुबोया है - और मैं यह खबर पुलिस में भी दे दूँगा।'

'उसकी यह मजाल! मैं उसका खून पी जाऊँगा', आनंद क्रोध से गरजते हुए बोला-'तुमने आते ही मुझसे क्यों न कहा-मैं उसे जूते लगाकर इस बस्ती से बाहर निकाल देता-’

'धीरज से काम लीजिए। इसीलिए तो आपसे कहना न चाहती थी। खोटे और कमीने आदमियों को मुँह नहीं लगाना चाहिए।'

'तो क्या मैं उस सांप को घर में रेंगने दूँगा-’ बेला ने झट से आनंद के होंठों पर हाथ रख दिया। उसी समय विष्णु आया और सलाम करता हुआ रसोईघर की ओर चला गया।

आनंद उसके पीछे जाने लगा परंतु बेला ने रोक लिया और प्रार्थना भरे स्वर में कहा-'धीरज से काम लीजिए। शीघ्रता अच्छी नहीं - कोई नई परेशानी खड़ी कर देगा। इनके पांव रुक सकते हैं पर जुबान को कौन रोकेगा', आनंद के पांव वहीं रुक गए।

सवेरे ही उसके माता-पिता आ पहुँचे और घर में फिर से कोहराम मच गया। माँ झील के किनारे पत्थरों से सिर फोड़-फोड़कर अपने लाल को पुकारने लगी। माँ की आँखों में मोतियाबिन्द उतर रहा था। जिससे उसकी दृष्टि वैसे ही जा चुकी थी और अब बेटे की मृत्यु ने तो उसे बिल्कुल अंधा कर दिया। वह बार-बार लड़खड़ाकर गिर पड़ती और आनंद को संभालने के लिए लपकना पड़ता।

बाबा शोक की मूर्ति बने दूर और मौन धरती पर बैठे भाग्य की इस कठोरता का खेल देखने लगे। उन्हें किसी से कुछ शिकायत न थी, दु:ख था तो बस इतना कि अपने जिगर के टुकड़े से दो प्यार की अंतिम बातें भी न कर सके।

दूसरे दिन दोपहर की छुट्टी के लिए जब कारखाना बंद हुआ तो विष्णु सीधा आनंद के दफ्तर की ओर हो लिया। इस समय वह दफ्तर में न था बल्कि किसी काम के विषय में बाहर किसी से बातचीत कर रहा था।

वहाँ से निपटकर जब वह घर जाने लगा तो विष्णु आगे आ पहुँचा और हाथ जोड़कर बोला- 'साहब।'

'क्या है?' असावधानी से कठोर स्वर में आनंद ने पूछा और उखड़ी हुई दृष्टि से विष्णु को देखने लगा।

'आपसे कुछ कहना है।' वह थरथराते स्वर में बोला।

'कौन-सा जहर उगलना चाहते हो?'

'मैं तो आपको इस बात की खबर देना चाहता हूँ कि मोहन डूबा नहीं डुबाया गया है। उसकी हत्या आपकी बीवी ने की है।'

'और तुम पास खड़े तमाशा देखते रहे। कमीने! क्या तुझे और कोई न मिला था। जहाँ भलमनसी दिखा सकता। लज्जा होती तो स्वयं भी उस झील में डूब जाता। मुझे यह अपनी अशुभ सूरत दिखाने का साहस तुझे कैसे हुआ?' आनंद यह सब एक ही सांस में कह गया और जब विष्णु ने कुछ कहना चाहा तो उसे पीटना आरंभ कर दिया और उसके गिर जाने पर लंबे-लंबे डग भरता हुआ घर की ओर चल पड़ा।

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