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नीलकण्ठ

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :431
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9707

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गुलशन नन्दा का एक और रोमांटिक उपन्यास

'क्या?' आनंद ने अवाक् दृष्टि से पहले उसे देखा और फिर लपक कर खिड़की से बाहर। गाड़ी रुक चुकी थी और सामने बोर्ड पर बड़े अक्षरों में लिखा 'खंडाला' पढ़ते ही आनंद की आँखें खुल गईं मानों किसी ने उसे स्वप्न से जगा दिया हो।

आनंद को यह देखकर संतोष हुआ. कि उसका डिब्बा प्लेटफॉर्म से बाहर आ ठहरा था और बरखा के कारण स्टेशन उजाड़ था। स्टेशन तो सदा यूं ही रहता था परंतु आनंद ने कभी यह उजड़ापन अनुभव नहीं किया था। क्योंकि बचपन इन्हीं पहाड़ियों में खेल-कूदकर बीता था। वह शीघ्रता से सामान उतारने लगा।

सामने से गुजरते दीनू चौकीदार को आनंद ने पुकारा, जो आनंद को देखते ही प्रसन्नता से उछल पड़ा और बोला-'छोटे बाबू! तुम कब आए?'

'अभी!' उसने मुस्कराते हुए उस गाड़ी की ओर देखा जो धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म छोड रही थी। जब उसने दीनू को आश्चर्य से बेला को देखते देखा तो अपनी घबराहट छिपाते हुए बोला-'पिताजी कहाँ हैं?'

'स्टेशन पर ही। ड्यूटी पर हैं।'

आनंद कुछ सोचकर डर गया। तो पिताजी आज ड्यूटी पर हैं - उसे बेला के संग यूं देखकर क्या सोचेंगे और बेला से भी वह क्या कहे। वह तो न जाने अपनी हठ पर क्यों अड़ी हुई है। वह दीनू को थोड़ी दूर ले गया और अपनी विवशता की पूरी कथा उसे सुना दी। दीनू आनंद के पिताजी के स्वभाव से परिचित था, जीवन के कई वर्ष उसने उन्हीं के साथ व्यतीत किए थे।

बेला दोनों को आपस में चोरी-छिपे बातें करते देख मन-ही-मन मुस्करा रही थी। आनंद बात समाप्त करके बेला के पास आया और बोला, 'एक बात मानोगी?'

'कौन-सी?'

'डरता हूँ कहीं बुरा न मान जाओ।'

'अच्छा मान भी गई तो आपका क्या और दूसरे के मन की दशा देखकर तो मैं बुरा भी न मानूँगी।'

'मनुष्य को होना भी ऐसा ही चाहिए। मेरा विचार है.. कहते-कहते आनंद रुक गया।'

'कहिए! कहिए रुक क्यों गए। आपके मन की बात तो मैं समझ गई।' 'क्या?' आनंद ने आश्चर्य से पूछा।

'कि मेरा इस समय यूं आपके घर जाना उचित नहीं।'

'हाँ बेला, इसीलिए।'

'आपने सोचा कि आज रात मैं वेटिंग रूम में ही व्यतीत कर दूँ।' बात काटते हुए वह बोली।

'तुम ठीक समझ गईं।'

'तो चलिए, मैं तैयार हूँ।'

'परंतु अभी नहीं, पिताजी ड्यूटी पर हैं और वेटिंग-रूम खुलवाने से पहले चाबी उन्हीं से लेनी होगी।'

'तो फिर मैं यहीं बैठी रहूँ?' 'नहीं तो, उस सामने वाले डिब्बे में बैठ जाओ। वह रात भर यहीं रहेगा। किसी सरकारी अफसर का है जो इस क्षेत्र का दौरा कर रहा है।'

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